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मैं कौन हूं?

कहो तुम मैं कौन हूं ? कहो तुम मैं कौन हूं? सुरीली कोई तान हूं? या घुटते स्वर का मौन हूं? सुकाल हूं कोई साज़ हूं? या दब गई कोई आवाज़ हूं ? सुनहरी भोर ,चांदनी रात हूं? या अनसुलझी कोई बात हूं? साहिल संग चलती कोई लहर हूं? या जर्जर सा कोई पहर हूं? […]

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अभिलाषा

अभिलाषा के आँचल में विश्वास के अटूट धागे से | अनमोल मोतियों सम, सपनों को पिरोया मैंने | सहेजा है धरोहर की तरह, पाना उन्हें निश्चय मेरा | आशा पर क़ायम अभिलाषा , दोनों में है गहरा रिश्ता | यह रिश्ता दृढ़ विश्वास का, जीया है जिसे साँसों ने मेरी | सत्य निहित अमोघ, अभ्युदय […]

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उठो तुम

अतीत की प्राचीर से सम्मान पाने वाली । ममता, दया और शक्ति रूपों में पूजे जाने वाली | आज किस बात से डरी हो? कोमल रंगों से बनी तुम | बेरंग जान पड़ती हो || रौशनी देने वाली तुम | क्यों अंधेरों में छुपी हो? निर्माण करने वाली तुम । क्यों विध्वंस से थमी हो […]

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केवल शब्द

निशब्द — शब्दों की भीड़ में,सूखी रेत पर | उकेरती मैं शब्द, दें आकार भावों को | निशब्द — भावों का सागर,खंगालता अंतर्मन द्वन्द टटोलता सुप्त मौन,आशाओं भरा | निशब्द — शब्दों की उलझन,ढूँढती सार्थक मोती | बने दर्पण धरा का,करें साकार मनसा | निशब्द — शब्दों का गुंजन,सीपियों में सोये जीव की मंद धड़कन […]

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कौन हो तुम ?

कौन हो तुम ? अभिलाषाओं के आँगन में रहकर अगाध प्रेम स्नेह बरसाती रही || हृदय वीणा के तार झंकृत कर अधरों पर मीठे राग सजाती रही || कौन हो तुम ? सोंधी मिट्टी की खुशबू सम मानव मन को सुहाती रही || पावन, पवित्र सी जल तरंग तुम वाणी मीठे बोलों से गर्वित करती […]

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नववर्ष

स्वागत नव वर्ष प्रभात बेला | मंगलमय नूतन कान्तिमय बेला | तुम्हारा आविर्भाव है आशीर्वाद मानव हित | तुम विराजो हृदय सुआसन पर | हो सराबोर सम्पूर्ण विश्व पटल | हे! नूतन बेला खुशियाँ भर दो हर जन में, जीवन भर दो प्राणो में, आशा बन जाओ किसानों में , हरियाली भर दो खलिहानो में, […]

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ओझल बिंदी

इस वर्ष फिर दिवस आया हमारी प्रिय स्वर वाहिनी हिंदी का || मन कुछ बेचैन सा लगा सोचा सब कुछ तो है फिर क्यों लगे ठगा ठगा || एक दबी सी आवाज़ उखड़ती साँसों भरी किसी कोने से आई जानती हूँ मैं तेरी व्यथा तूँ क्यों है ठगा ठगा || अपने दिल पर हाथ रख […]

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आशा

आशा की लौ से हे बेकल मन काली रात को रोशन कर ले | सहला कर सब ज़ख्मों को जीने की राह हासिल कर ले | अब छोड़ दे उन सब लम्हों को जो अब तक धुंदले- धुंदले हैं | छू ले आशा की वह मूक किरण जो दबी निराशा के धुएँ में | चाहत […]

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स्त्री

कोमल रंगों से बनी तुम | बेरंग जान पड़ती हो || रौशनी देने वाली तुम | क्यों अंधेरों में दबी हो? निर्माण करने वाली तुम | क्यों विध्वंस से थमी हो ? प्रगति पथ की कड़ी तुम | क्यों ठोकरों से डरी हो ? इतिहास रचने वाली तुम | क्यों आज से हारी हो ? […]

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तुम

कहाँ खो गई तुम बहुत धुन से ढूँढा पर ना पाया कहीं | दिल ने कहा,तुम खोई होगी गहन रंगों की दुनिया में | कैनवास पर उकेरती होगी कुछ दबा-दबा बहता जो साँसो में | समेटती होगी बिखरे अनकहे बोलों और निशब्द एहसासों को | होगी मसरूफ रंगों, बच्चों, किताबों, और जीने के अंदाज़ों में […]

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